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उद्यान विभाग प्रत्येक वर्ष विभिन्न योजनाओं में 10-15 करोड़ रुपए का सामान्य अदरक, बीज के नाम पर कृषकों को अनुदान पर बांटता है। सामान्य किस्म के अदरक को रियो-डी-जैनरो किस्म बता कर विगत बीस बर्षो से अदरक बीज के नाम पर कृषकों के साथ छलावा किया जा रहा है।

विभाग द्वारा योजनाओं में गाइडलाइंस का अनुपालन नहीं किया जा रहा है। योजनाओं में गुणवत्ता बनाए रखने हेतु सभी निवेश यथा बीज दवा खाद आदि भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, कृषि विश्वविद्यालय, कृषि शोध केन्द्रों, भारतीय एवं राज्य बीज निगमों से क्रय करने के निर्देश दिए गए हैं। किन्तु विभाग द्वारा ऐसा नहीं किया जाता।

योजनाओं में भ्रष्टाचार रोकने तथा पारदर्शिता के उद्देश्य से कृषकों को मिलने वाला अनुदान डीबीटी के माध्यम से कृषकों के खाते में जमा करने का प्रावधान है। किन्तु विभाग स्वयं ही निम्न स्तर का अदरक उच्च दामों पर बीज के नाम पर क्रय कर अदरक उत्पादकों को वितरित करता है।

अदरक की उन्नत किस्मों के बीज प्राप्त करने के मुख्य स्रोत हैं

  1. आईआईएसआर प्रयोगिक क्षेत्र, केरल ।
  2. कृषि एवं तकनीकी वि. वि. पोट्टांगी उडीसा।
  3. डॉ. वाइएस परमार यूनिवर्सिटी आफ हार्टिकल्चर, नौणी सोलन, हिमांचल प्रदेश।

किन्तु, उद्यान विभाग योजनाओं में आवंटित धन से टेंडर प्रक्रिया दिखाकर निम्न स्तर का अदरक कभी फ्रुट फैड हल्द्वानी, कभी तराई बीज निगम कभी समितियों के विलौ पर दलालों के माध्यम से विगत बीस बर्षो से क्रय करता आ रहा है ये फर्में मूल उत्पादक फर्में नहीं होती।इस खरीद में सीड एक्ट का भी पालन नहीं किया जाता। अदरक उत्पादकों को अदरक बीज उत्पादन में योजनाओं से लाभान्वित कर आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास नहीं किए गए।

समाचार पत्रों एवं सोशल मीडिया में समय-समय पर कृषकों द्वारा समय पर अदरक बीज न मिल पाने साथ ही खराब अदरक बीज की शिकायतें छपती रहीं हें। अदरक बीज खरीद पर सवाल उठते है तो, विभाग के एक-दो अधिकारियों को निलंबित कर या बीज आपूर्ति कर्ता को ब्लेक लिस्ट कर प्रकरण वहीं समाप्त कर दिया जाता है।

एक रिपोर्ट :

राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में, नगदी फसल के रूप में अदरक का उत्पादन कई दशकों से किया जा रहा है। विभागीय आकडों के अनुसार उत्तराखंड में 4876 हैक्टियर क्षेत्र फल में अदरक की कास्त की जाती है, जिससे 47120 मैट्रिक टन का उत्पादन होता है। टेहरी जनपद में 2019 – 20 में 1490 हैक्टेयर क्षेत्र फल में अदरक की कास्त की गई जिससे 14872 मैट्रिक टन अदरक उत्पादन प्राप्त हुआ। विभागीय आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2016 से 2020 तक अदरक उत्पादन में कोई भी बढ़ोतरी नहीं दर्शाई गई है, जिसका मुख्य कारण समय पर उच्च गुणवत्ता का अदरक बीज न मिल पाना है. जबकि विभागीय योजनाओं में अदरक बीज खरीद में धनराशि सैकड़ों गुना बढ़ा दी गई है।

हिमांचल प्रदेश की तरह राज्य में कभी भी अदरक बीज उत्पादन के प्रयास नहीं किए गए। अदरक की उन्नत किस्मों के बीज प्राप्त करने के मुख्य स्रोत हैं-

  1. आईआईएसआर प्रयोगिक क्षेत्र, केरल।
  2. कृषि एवं तकनीकी वि० वि० पोट्टांगी उडीसा।
  3. डॉ. वाइएस परमार यूनिवर्सिटी आफ हार्टिकल्चर, नौणी सोलन, हिमांचल प्रदेश।

उद्यान विभाग विगत 20 – 30 वर्षों से पूर्वोत्तर राज्यों असम, मणिपुर, मेघालय व अन्य राज्यों से सामान्य किस्म के अदरक को प्रमाणित/Truthful बीज के नाम पर रियो-डी-जिनेरियो किस्म बता कर 10 से 15 करोड़ रुपये का अदरक प्रति वर्ष क्रय कर राज्य के कृषकों को योजनाओं में आधी कीमत या मुफ्त में अदरक बीज के नाम पर बांटता आ रहा है।

अदरक बीज के आपूर्ति करने वाले (दलाल) पूर्वोत्तर राज्यों की मंडियों से 10-15 रुपये प्रति किलो की दर से क्रय करते हैं तथा अदरक बीज के नाम पर उद्यान विभाग से 80 से 100 रुपये प्रति किलो की दर से इन दलालों के माध्यम से क्रय कर, राज्य में कृषकों को योजनाओं के अंतर्गत वितरित करता आ रहा है. जिस पर 50 -70 प्रतिशत का अनुदान राज्य सरकार द्वारा दिया जाता है। अदरक बीज की खरीद पर कई बार सवाल उठे हैं, तथा विवाद भी हुए हैं, पूर्ववर्ती सरकार में भी अदरक बीज खरीद प्रकरण खूब चर्चाओं में रहा। समय-समय पर जब अदरक बीज खरीद पर सवाल उठते हैं तो विभाग के एक-दो अधिकारियों को निलंबित कर, या बीज आपूर्तिकर्ता को ब्लैक लिस्ट कर प्रकरण वहीं समाप्त कर दिया जाता है।

अदरक बीज आपूर्तिकर्ता/ठेकेदार (दलाल) न तो अदरक बीज उत्पादक होते हैं, और न ही किसी बीज आपूर्ति करने वाली कंपनी/ फर्म के अधिकृत विक्रेता। सम्मपरीक्षा/Audit से बचने के लिए इनके पूर्व में इन दलालों द्वारा फ्रुटफैड हल्दानी नैनीताल या अन्य सहकारिता समितियों के बिल का प्रयोग किया जाता था जिस पर बीज आपूर्ति करने वाले इन समितियों को 5 – 10 % तक कमिशन देते थे. ये समितियां न तो अदरक उत्पादक होते हैं, और न ही बीज आपूर्ति करने वाली संस्था। इस प्रकार अदरक बीज क्रय में /Seed act/ उत्तराखंड पर्चेज रूल्स दोनों का उल्लघंन किया जाता रहा है। समितियां के माध्यम से क्रय करने पर जब सवाल उठने लगे तो वर्तमान में टैन्डर प्रक्रिया से अदरक बीज क्रय किया जाने लगा।

भारत सरकार की गाइडलाइंस के अनुसार योजनाओं में क्रय किए जाने वाला बीज भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, कृषि शोध संस्थान, कृषि विश्वविद्यालय, केन्द्र या राज्य के बीज निगमों से ही क्रय करने के निर्देश है किन्तु उत्तराखंड में ऐसा नहीं होता अधिक तर बीज कमिशन के चक्कर में निजी कम्पनियों या दलालों के माध्यम से ही क्रय किए जाते हैं।

कृषकों को योजनाओं का सीधा लाभ मिल सके भारत सरकार के कृषि एवं कृषक कल्याण मंत्रालय ने अपने पत्रांक कृषि भवन, नई दिल्ली दिनांक 28, फरवरी, 2017 के द्वारा कृषि विभाग की योजनाओं में कृषकों को मिलने वाला अनुदान डीवीटी के अन्तर्गत सीधे कृषकों के खाते में डालने के निर्देश सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के कृषि उत्पादन आयुक्त, मुख्य सचिव, सचिव एवं निदेशक कृषि को किये गये।

कृषकों को योजनाओं में मिलने वाले अनुदान का डीबीटी के माध्यम से भुगतान सम्बन्धित भारत सरकार के आदेशों का नहीं हो रहा अनुपालन।

उत्तरप्रदेश, हिमाचल आदि सभी राज्यों में वर्ष 2017 से ही कृषकों को योजनाओं में मिलने वाला अनुदान डीबीटी के माध्यम से सीधे कृषकों के खाते में जा रहा है। इन राज्यों में पंजीकृत/चयनित कृषक भारत सरकार/राज्य सरकार के संस्थानो/पंजीकृत बीज विक्रेताओं जो कृषि विभाग से पंजीकृत हों से स्वेच्छानुसार एमआरपी से अनधिक दरों पर नगद मूल्य पर क्रय कर क्रय रसीद सम्बंधित विभाग से भुगतान प्राप्त करने हेतु उपलब्ध कराई जाती है सत्यापन के बाद धनराशि कृषकों के बैंक खातों में विभाग द्वारा डाल दी जाती है।

अधिकतर अदरक उत्पादकों का कहना है कि स्थानीय उत्पादित अदरक बोने पर उपज ज्यादा अच्छी होती है, विभाग द्वारा प्रमाणित बीज के नाम पर दिये गये अदरक बीज मै बीमारी अधिक लगती है साथ ही उपज भी कम होती है। अदरक उत्पादित क्षेत्रों मै सहकारिता समितियाँ बनी हुई हैं, जिनका मुख्य कार्य अदरक का विपणन करना है। ये समितियाँ कास्तकारौ से 15/20 रुपया प्रति किलो अदरक खरीद कर 30/40 रुपया प्रति किलो की दर से मंण्डियों मै बेचते हैं।

यदि जनपद स्तर पर स्थानीय समितियों से ही यहां के उत्पादित अदरक को विभाग उपचारित कर अदरक बीज के रूप में खरीद कर योजनाओं में कास्तकारौ को उपलब्ध कराये तो इससे दोहरा लाभ होगा, एक तो कास्तकारौ को समय पर अच्छी गुणवत्ता का बीज उपलब्ध होगा साथ ही कास्तकारौ को अदरक के अच्छी कीमत भी मिलेगी ।

टिहरी जनपद के फगोट विकास खण्ड के अन्तर्गत, आगराखाल के अदरक उत्पादकों ने स्थानीय अदरक बीज से उत्पादन कर इस वर्ष माह अगस्त में ही एक करोड़ से अधिक का अदरक बेच दिया। इस क्षेत्र के कृषक कई दशकों से अदरक की व्यवसायिक खेती करते आ रहे हैं।

धमांदस्यू, दोणी व कुंजणी पट्टी के कसमोली, आगर, सल्डोगी, द्यूरी, कुखुई, चल्डगांव, कटकोड़, नौर, बसुई, पीडी, मठियाली, तिमली, मुंडाला, ससमण, बेराई, बांसकाटल, कोटर, रणाकोट, कुखेल, खनाना, जयकोट, जखोली, मैगा, लवा, तमियार गांवों के कृषक अदरक उत्पादन करते हैं।

अधिकांश प्रगतिशील कृषक स्थानीय रूप से उत्पादित अदरक बीज से ही अदरक का उत्पादन करते हैं, स्थानीय बीज की मांग अधिक रहती है ,किन्तु उतनी मात्रा में अदरक बीज उत्पादन नहीं हो पाता कृषकों का कहना है कि उद्यान विभाग द्वारा अदरक का बीज समय पर नहीं मिलता इस क्षेत्र में अदरक बीज की बुआई फरवरी में हो जाती है ,जब कि विभाग द्वारा अदरक बीज की आपूर्ति माह अप्रैल मई तक हो पाती है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है , साथ ही विभाग द्वारा आपूर्ति अदरक बीज बोने पर कई तरह की बीमारियों व कीट खड़ी फसल पर लगते हैं ।

अदरक उत्पादित क्षेत्रों में कुछ कास्तकार स्वयंम अदरक का बीज उत्पादित करते हैं टेहरी जनपद के फगोट विकास खण्ड के अन्तर्गत आगरा खाल, कस्मोली, आगर आदि ग्राम सभाओं के अदरक उत्पादकों के साथ मेंने स्वंम वैठक की जिसमें हरियाली ग्रामीण कृषक श्रमिक सहकारी समिति के अध्यक्ष हरीश चंद्र रमोला, ग्रामीण श्रमिक कृषक कल्याण सहकारी समिति आगराखाल के अध्यक्ष कुंवर सिंह रावत व अन्य कृषकों ने भाग लिया स्थानीय रूप से उत्पादित अदरक बीज की मागं काफी रहती है ।

देहरादून जनपद के विकास नगर व सहसपुर क्षेत्रों में 26 अक्टुबर 2020 को पुराने सहयोगियों जगत राम सेमवाल प्रभारी उद्यान सचल दल केन्द्र लांघा एवं इन्दु भूषण कुमोला प्रभारी उद्यान सचल दल केन्द्र विकास नगर के सहयोग से लांघा एवं भाटोवाली क्षेत्र के किसानों द्वारा अदरक बीज उत्पादन प्रक्षेत्र का भ्रमण तथा कुछ अदरक बीज उत्पादकों शांति सिंह, श्रीचन्द फागुन सिंह, भान सिंह, संदीप चौहान आदि से वार्ता की।

इन क्षेत्रों में किसानों द्वारा, परंम्परागत रूप से दशकों से अदरक बीज का उत्पादन किया जा रहा है। क्षेत्र के अदरक बीज उत्पादकों का कहना था कि पहले हिमाचल से अदरक का बीज लाते थे या अपना उत्पादित किया हुआ अदरक ही बोते थे जिससे उपज अच्छी मिलती थी जब से योजनाओं का बीज बोना शुरू किया कई तरह की बीमारियों खेतों में आगयी है जिससे उपज काफी कम हो गई है जिसकारण वर्तमान में अदरक उत्पादन क्षेत्र में कम हो रहा है।

चम्पावत जिले के 25 सीमांत गांवों में भारत सरकार की समेकित सहकारी विकास योजना के अंतर्गत 12 बहुद्देशीय सहकारी समितियों के माध्यम से स्थानीय अदरक उत्पादकों से अदरक बीज उत्पादन कराया जा रहा है। वर्तमान में 200 एकड़ भूमि में एक हजार कुंतल अदरक की वुवाई कराई गई है जो कि एक शानदार पहल है। इस कार्य में डा० परमार बागवानी विश्व विद्यालय नौणी सोलन हिमाचल प्रदेश के बैज्ञानिकों का भी सहयोग लिया जा रहा है।

योजनाओं में जब तक कृषकों के हित में सुधार नहीं किया जाता व क्रियावयन में पारदर्शिता नहीं लाई जाती कृषकों को योजनाओं का पूरा लाभ मिलेगा सोचना बेमानी है। उच्च स्तर पर योजनाओं का मूल्यांकन सिर्फ इस आधार पर होता है कि विभाग को कितना बजट आवंटित हुआ और अब तक कितना खर्च हुआ। राज्य में कोई ऐसा सक्षम और ईमानदार सिस्टम नहीं दिखाई देता जो धरातल पर योजनाओं का ईमानदारी से मूल्यांकन कर योजनाओं में सुधार ला सके।

अप्रैल तक होती है बुआई

राज्य के पर्वतीय जिलों में ही मुख्य रूप से अदरक और हल्दी की खेती होती है। इसकी बुआई का समय फरवरी मध्य से अपै्रल तक होता है।

नहीं मिल रहा ‘रियो डी जनेरियो

अदरक की ‘रियो डी जनेरियो’ प्रजाति को राज्य के लिए बेहतर मानते हुए विभाग इसे प्रोत्साहित कर रहा है। इस पर तुर्रा ये कि पर्याप्त आपूर्ति के लिए इसका बीज ही नहीं मिल पा रहा।

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उद्यान विभाग अदरक बीज को लेकर उत्पादकों के मन की बात नहीं सुन पा रहा है। अच्छे उत्पादन के लिए काश्तकारों में स्थानीय बीज की डिमांड है, लेकिन विभाग लोकल फॉर वोकल के बजाए उत्पादकों को असम व अन्य राज्यों से आयात बीज थोप रहा है। जिससे लोकल बीज को प्राथमिकता देने वाले जिले के अधिकतर काश्तकारों को बीज पर मिलने वाली सब्सिडी के लाभ से वंचित रहना पड़ रहा है। साथ ही काश्तकारों का कहना है कि बाहरी राज्यों के बीज पर कीड़ा भी जल्द लगता है।

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जिले के आगराखाल, कुंजणी, धमांस्यूं, दोगी पट्टी, क्वीली,कुमाल्डा,मरोड़ा और कीर्तिनगर क्षेत्र में नकदी फसल अदरक की अच्छी खासी पैदावार होती है। अकेले आगराखाल क्षेत्र में ही प्रतिवर्ष सात से आठ करोड़ रुपये के अदरक का व्यापार होता है। अब मार्च-अप्रैल से अदरक की बुआई शुरू होती है, लेकिन उद्यान विभाग काश्तकारों की मांग के अनुरूप उन्हें स्थानीय अदरक बीज उपलब्ध नहीं करा पा रहा है। जिससे उत्पादक खासे निराश हैं। अदरक उत्पादक पुष्कर सिंह रावत, प्रवीन रमोला और मदन चंद रमोला कहते हैं, कि स्थानीय बीज की बुआई करने से अच्छा उत्पादन मिलता है, लेकिन उद्यान विभाग दूसरे राज्यों से आयात जो अदरक का बीज देता है, उसमें अक्सर बीमारी लगती है, जिससे उत्पादन भी कम होता है। यही वजह है, कि क्षेत्र के अधिकतर उत्पादक स्थानीय बीज को ही प्राथमिकता देते हैं, जिससे उन्हें बीज पर सरकार से मिलने वाली 50 फीसदी सब्सिडी नहीं मिल पाती है। आगराखाल के काश्तकार व व्यापारी सुरेंद्र कंडारी का कहना है कि उद्यान विभाग को काश्तकारों की डिमांड के अनुरूप बीज देना चाहिए, जिससे अच्छी उपज से उन्हें मुनाफा हो सके। लेकिन वर्षों से मांग करने के बाद भी स्थानीय बीज खरीद को मान्यता नहीं दी जा रही है, जिससे लोगों को बगैर सब्सिडी का 100 से 110 रुपये प्रति किलो स्थानीय बीज खरीदना पड़ता है।

कलस्टर आधार पर नहीं होती है नुकसान की भरपाई

अदरक की फसल का बीमा कराने पर भी काश्तकारों को नुकसान का मुआवजा नहीं मिल पाता है। विभाग नुकसान का आंकलन कलस्टर के आधार पर करता है, जबकि एक ही क्षेत्र में कहीं ज्यादा तो कहीं कम नुकसान होता है। कलस्टर के आधार पर कम ज्यादा नुकसान होने पर भी एक तरह का ही मुआवजा दिया जाता है। इससे काश्तकारों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है। यही नहीं विभागीय आंकड़ों के मुताबिक टिहरी जिले में ही वर्ष 2019-20 में 1490 हेक्टेयर पर करीब 14872 मीट्रिक टन अदरक उत्पादन किया गया। जिससे स्पष्ट है, कि अदरक उत्पादन से सैकड़ों काश्तकार जुड़े हुए हैं, बावजूद अदरक का समर्थन मूल्य घोषित नहीं किया गया है।

स्थानीय अदरक बीज खरीदने के कोई निर्देश नहीं हैं। जिले से 800 क्विंटल की डिमांड मिली है। अप्रैल तक आवंटित कर दिया जाएगा। स्थानीय बीज को लेकर फेडरेशन गठन पर विचार किया जा रहा था, लेकिन वह बात आगे नहीं बढ़ पाई। बीज संरक्षण के लिए कोल्ड स्टोर भी जरूरी है।

डॉ. राजेंद्र कुकसाल, कृषि एवं उद्यान विशेषज्ञ

मोबाइल न. 9456590999