उत्तराखंड के अमर बलिदानी शहीद श्रीदेव सुमन की आज 78वीं पुण्यतिथि है। मात्र 28 वर्ष 2 महीने की अल्पायु में ही अपने देश के लिए शहीद होने वाले श्रीदेव सुमन को टिहरी की ऐतिहासिक जनक्रांति का महानायक कहा जाता है। श्रीदेव सुमन ने ब्रिटिश हुकूमत और टिहरी की अलोकतांत्रिक राजशाही के खिलाफ 84 दिनों की एतिहासिक भूख हड़ताल के बाद आज ही के दिन यानी 25 जुलाई 1944 को अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। उनके बलिदान को भुलाया नहीं जा सकता। श्रीदेव सुमन के बलिदान दिवस को टिहरी में “सुमन दिवस” के रूप में मनाया जाता है। मशहूर हिंदी फिल्म “आनन्द” मे राजेश खन्ना को वह डायलॉग ‘जिंदगी लंबी नहीं बड़ी होनी चाहिए” बाबू मुशाय, अगर किसी व्यक्ति की जिन्दगी पर फिट बैठता है, तो वो हैं मात्र 28 वर्ष 2 महीने की अल्पायु में ही अपने देश के लिए शहीद होने वाले अमर शहीद श्रीदेव सुमन।
श्रीदेव सुमन का मूल नाम श्रीदत्त बडोनी था। उनके पिता का नाम हरिराम बडोनी और माता का नाम तारा देवी था। उनका जन्म 25 मई 1916 को टिहरी के जौल गांव में हुआ था। मात्र 3 वर्ष की अल्पायु मे इसके सर से पिता का साया उठ गया था। सुमन ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गाँव के ही स्कूल से हासिल की।
1930 में मात्र 14 वर्ष की किशोरावस्था में ‘नमक सत्याग्रह’ आन्दोलन मे भाग लेकर श्रीदेव सुमन ने साबित कर दिया था कि उनके अन्दर देश प्रेम की भावना किस हद तक भारी हुई थी। इसके आलावा छोटी सी उम्र में ही श्रीनगर में आयोजित जिला राजनैतिक सम्मेलन में शामिल हुये, तथा इस अवसर पर उन्होंने पंडित जवाहर लाल नेहरु को अपने ओजस्वी भाषण से गढ़वाल राज्य की दुर्दशा से परिचित कराया, तथा खुद का मुरीद भी बना दिया। यहीं से उन्होंने ‘जिला गढ़वाल’ और ‘राज्य गढ़वाल’ की एकता का नारा बुलंद किया। साथ ही पूरी तरह से सार्वजनिक जीवन में आते हुए 23 जनवरी, 1939 को देहरादून में स्थापित ‘टिहरी राज्य प्रजा मंडल’ के संयोजक मंत्री चुने गये। उन्होंने मार्च 1936 गढदेश सेवा संघ की स्थापना की थी। जबकि, जून 1937 में ‘सुमन सौरभ’ कविता संग्रह प्रकाशित किया। वहीं, जनवरी 1939 में देहरादून में प्रजामंडल के संस्थापक सचिव चुने गए।
मई 1940 में टिहरी रियासत ने श्रीदेव सुमन के भाषण पर प्रतिबंध लगा दिया। और मई 1941 में उन्हें रियासत से निष्कासित कर दिया गया। जुलाई 1941 में श्रीदेव सुमन को टिहरी में पहली बार गिरफ्तार किया गया। उनके बाद अगस्त 1942 में टिहरी में ही दूसरी बार गिरफ्तारी हुई। और फिर नवंबर 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्हें आगरा सेंट्रल जेल में बंद कर दिया गया। उन्हें नवंबर 1943 में आगरा सेंट्रल जेल से रिहा किया गया।
उसके बाद ब्रिटिश हुकूमत और टिहरी की अलोकतांत्रिक राजशाही के खिलाफ लगातार आंदोलन कर रहे श्रीदेव सुमन को दिसंबर 1943 को टिहरी की जेल में डाल दिया गया। जिसके बाद उन्होंने भूख हड़ताल करने का फैसला किया। 209 दिनों तक जेल में रहने और 84 दिनों के भूख हड़ताल के बाद 25 जुलाई 1944 को मात्र 29 वर्ष की अल्पायु में श्रीदेव सुमन ने प्राण त्याग दिए।
लेकिन उनकी शहादत व्यर्थ नहीं गयी। अपने जीते जी न सही, अपनी शहादत के बाद वे अपना मकसद पूरा कर गये। उनकी शहादत का जनता पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि उनके बलिदान का अघ्र्य पाकर टिहरी राज्य में आंदोलन और तेज हो गया। जनता ने राजशाही के खिलाफ खुला विद्रोह कर दिया। इसके फलस्वरूप टिहरी रियासत को प्रजामंडल को वैधानिक करार देने को मजबूर होना पड़ा। और 1 अगस्त 1949 को टिहरी गढ़वाल राज्य का भारतीय गणराज्य में विलय हो गया।
टिहरी मे श्रीदेव सुमन के बलिदान दिवस को “सुमन दिवस” के रूप मे बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।