kamleshwar mandir srinagar

श्रीनगर गढ़वाल: इस वर्ष श्रीनगर गढ़वाल स्थित में कमलेश्वर महादेव में आगामी 6 नवंबर को बैकुंठ चतुर्दशी पर्व पर खड़ा दिया अनुष्ठान होगा। कमलेश्वर महादेव मंदिर में होने वाली “खड़ दिया” पूजा के लिए पंजीकरण प्रक्रिया जारी है। अब तक देश के विभिन्न हिस्सों से करीब 119 निसंतान दंपतियों द्वारा मंदिर समिति के पास अपना पंजीकरण करवाया जा चुका है। इसके अलावा श्रद्धालु बैकुंठ चतुर्दशी पर्व पर मंदिर में 365 रुई की बत्तियां चढ़ाएंगे।

आदिकाल से चली आ रही मान्यता के अनुसार कमलेश्वर महादेव मंदिर में कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी (बैकुंठ चतुर्दशी) पर सदियों से रुई की बत्ती अर्पित करने और खड़ दिया अनुष्ठान की परंपरा चली आ रही है। ऐसी मान्यता है कि बैकुंठ चतुर्दशी की रात जो निसंतान दम्पत्ति पुत्र प्राप्ति की कामना हेतु हाथ में जलता हुआ दीया लेकर खड़े रहते हैं उन्हें संतान की प्राप्ति होती है।

मंदिर के महंत आशुतोष पुरी ने बताया कि 119 दंपतियों ने खड़ दिया अनुष्ठान के लिए पंजीकरण करवाया है। 6 नवंबर को गोधूलि वेला में पूजा करने के बाद दंपती के हाथों में दीया दे दिए जाएंगे। 7 नवंबर तड़के स्नान और पूजा के पश्चात श्रीसंवाद दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि चतुर्दशी 6 नवंबर की शाम 4:18 बजे से सात नवंबर की शाम 4:18 बजे तक रहेगी। इस अवधि में श्रद्धालु मंदिर में परिवार की खुशहाली के लिए रुई की बत्तियां भगवान शिव को अर्पित कर सकते हैं। इसमें पूरे साल के हिसाब से 365 बत्तियां चढ़ाई जाती है।

कैसे पड़ा इस मंदिर का नाम कमलेश्वर मंदिर

मान्यता है कि श्रीनगर स्थित कमलेश्वर शिवालय में भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र की प्राप्ति के लिए भगवान शिव की आराधना की थी। इस दौरान व्रत के अनुसार भगवान विष्णु को 100 कमलों को शिव आराधना के दौरान शिव लिंग पर चढ़ाना था, लेकिन तब भगवान शिव ने भक्ति की परीक्षा लेने के लिए 99 कमलों के बाद एक कमल छुपा दिया। जिसके बाद कमल अर्पण करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने नेत्र को चढ़ा दिया। जिसके बाद से ही भगवान विष्णु के नेत्रों को कमल नयन कहा जाता है।

वहीँ एक और मान्यता के अनुसार त्रेता युग मे भगवान राम ने जब रावण का वध किया। तो उन पर ब्रह्म हत्या का पाप लगा। अब भगवान राम इस पाप का प्रायश्चित करने के लिये इधर उधर भटकने लगे। कही उन्हे उपयुक्त स्थान नही मिला। अन्त मे गुरू वशिष्ट ने अपरोक्षानुभूति के माध्यम से तपस्या के लिये कमलेश्वर महादेव को सिद्व स्थान बताया। भगवान राम ने 108 कमल पुष्पो से भगवान शंकर की अराधना की। भगवान शंकर ने राम की परीक्षा के लिये एक कमल पुष्प छिपा दिया। राम चन्द्र ने फिर अपने नेत्र को अर्पित करते हुये कहने लगे मेरी मा बचपन मे मुझे कमल नयन कह कर पुकारती थी, 108वे कमल के रूप मे ये मेरा नेत्र है। भगवान शंकर ने राम चन्द्र के समर्पण को देखकर बडे प्रसन्न होकर कहने लगे आप ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त हुये। साथ ही यह क्षेत्र तुम्हारे तप के कारण कमलेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्व होगा। बैकुन्ठ चतुर्दशी के अवसर पर जो भक्त ऊ नमः शिवाय का जाप करते हुये पूजन करेगा। उसकी सम्पूर्ण मनोरथ पूर्ण होगे। बैकुन्ठ चतुर्दशी मेला वर्तमान मे केवल पूजा अराधना तक ही सीमित नही रह गया है। श्रीनगर की बढती जनसंख्या और शिक्षा का केन्द्र बिन्दु होने के कारण एक व्यापक धार्मिक, सांस्कृतिक कार्यक्रमो का आयोजन करके पर्यटको को अपनी ओर आकृर्षित किया जाता है।