Navratri 2022: शास्त्रों में उत्तराखंड को ऋषि मुनियों की तपस्थली व देवभूमि के नाम से जाना जाता है। यहां की विशिष्टता को पहचान कर के भक्तों ने अद्भुत ज्ञान प्राप्त करके उस परम शक्ति के साथ आत्मसात किया है। इसका जीता जागता उदाहरण श्रीनगर में स्थित श्रीयंत्र टापू है। जहां आदि गुरु शंकराचार्य ने मां भगवती की आराधना करके, मां के शक्ति स्वरूप के महत्व की प्रशंसा मुक्त कंठ से की है।
जब हम इतिहास के पृष्ठों का अवलोकन करते हैं तो नारी शक्ति की महत्ता प्राचीन काल से देखने को मिलती हैं। प्राचीन साहित्य में गार्गी का स्थान महत्वपूर्ण माना जाता है, जिसने अपनी बुद्धि और ज्ञान से याज्ञवल्क्य ऋषि को चुनौती देकर पराजित किया। मन्डन मिश्र की पत्नी भारती ने भी शंकराचार्य को शास्त्रार्थ में पराजित किया। लोपामुद्रा, अपाला, घोषा, कौशल्या, सुमित्रा आदि नारियों ने भी राष्ट्र के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वास्तव में सही अर्थों में चिन्तन किया जाय तो नारी नर से बढ़कर है। नारी मनुष्य के जीवन में कई रुपों में अवतरित होती है। इसी कारण हमारी संस्कृति में नारी को देवी का रूप माना जाता है। इसका साक्षात प्रमाण नवरात्रि का त्योहार है।
नवरात्रि पूजा के आठवें व नौवें दिन नौ कुंवारी कन्याओं की पूजा की जाती है। जीवन के विभिन्न रुपों में नारी ही सच्ची मार्ग दर्शिका होती है। मां ही जीवन का आधार तथा केन्द्र बिन्दु होती है। मां के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। मां बच्चे को 9 मास गर्व में धारण करके अनेक प्रकार के कष्ट सहन करती है। इसी कारण मां को सर्वश्रेष्ठ स्थान दिया गया है। जिसके स्मरण करने मात्र से सभी प्रकार के दुखों से मुक्ति मिल जाती है। यही कारण है कि हमारे यहां गंगा माता, गो माता, पृथ्वी माता, कहकर उस निष्ठा को बड़ी श्रद्धा के साथ सम्बोधित किया जाता है। नवरात्रि का त्योहार इसी शक्ति का प्रतीक है।
नवरात्रि का अर्थ है नौ दिन और नौ रात्रि तक एकाग्र चित्त होकर मां की आराधना में लीन होकर सम्पूर्ण भाव से जप तप करना, नवरात्रों में मां भगवती की पूजा दुर्गा सप्तशती के पाटों से की जाती है। ऋग्वेद में कहा गया है मा भगवती ही महत्वपूर्ण शक्ति है। उन्हीं से सम्पूर्ण विश्व का सन्चालन होता है, उनके अतिरिक्त कोई दूसरी शक्ति नहीं है।
इस वर्ष शारदीय नवरात्रि 26 सितंबर से शुरू होकर 4 अक्टूबर तक है। 5 अक्टूबर को विजया दशमी का पर्व है। इस नवरात्रि में अद्भुत व प्रभाव कारी संयोग बन रहा है। इस पुनीत पर्व पर मां हाथी में सवार होकर भक्तों के घर में शुभागमन करेगी। जो कि शास्त्रीय मान्यता के अनुसार बड़ा ही शुभ माना जाता है। सुबह 8 बजकर 7 मिनट तक शुक्ल योग, इसके बाद ब्रह्म योग की स्थिति बन रही है। अभिजीत मुहूर्त 11 बजकर 59 मिनट से 12 बजकर 47 मिनट तक है। इन मूहर्तो में कलश स्थापना तथा हरियाली बोना शुभ है। ज्योतिषीय विश्लेषण के अनुसार मां के 9 स्वरुपो का क्रम इस प्रकार से है।
- 26 सितम्बर घट स्थापना, शैल पुत्री पूजन,
- 27 सितम्बर ब्रह्मचारिणी पूजन,
- 28 सितम्बर चन्द्र घन्टा पूजन,
- 29 सितम्बर कुष्मान्डा पूजन,
- 30 सितम्बर स्कन्दमाता पूजन,
- 01 अक्टूबर कात्यायनी पूजन,
- 02 अक्टूवर कालरात्रि पूजन,
- 03 अक्टूवर महागौरी पूजन,
- 04 अक्टूबर को महागौरी पूजन।
प्रत्येक दिन मां के अलग अलग स्वरुपों की पूजा बड़ी ही विधि विधान से की जाती है। सच्ची निष्ठा और एकाग्रता से की गई पूजा से मां बहुत जल्दी खुश हो जाती है।
नवरात्रि के पूजन में निम्न बातों का ध्यान रखना जरूरी है
- मा के 9 रूपों की पूजा विशेष तरीके से करें। जिस दिन मां के जिस स्वरूप का दिन है,उस दिन उस रुप का यन्त्र व ध्यान करें।
- नवरात्रि के समय सुबह 8बजे से पहले स्नान कर देना चाहिए।
- नौ दिन तक नमक का सेवन न करें।
- नवरात्रि के 9दिन तक ज्योति जलाये।
- नवरात्रि के शुभ दिनों में घर में जो भी भोजन बने उसे सबसे पहले मां को भोग लगाना चाहिए।
- नवरात्रि के दौरान सात्विक खाना ही खाएं।
- अखन्ड ज्योति जलाये पर पूजा स्थल को खाली न छोड़ें।
- चमडे से निर्मित बस्तुओ का परित्याग करें।
- भोजन में लहसुन प्याज का प्रयोग बिल्कुल भी न करें।
- मास मदिरा का प्रयोग न करें।
- जमीन पर शयन करें।
- अनावश्यक वार्तालाप से बचें।
- मन में वासनात्मक बिचार न लाएं।
- दुर्गा सप्तशती नामक ग्रंथ का नियमित श्रद्धा पूर्वक पूजन करें।
- छोटी छोटी कन्याओं को भगवती रूप में मानकर प्रतिदिन श्रद्धा भाव से भोजन कराएं।
इस प्रकार नवरात्रि के शुभ अवसर पर उपवास रखने से शरीर को भी आराम मिल जाता है। अच्छी सोच सकारात्मक बिचारो का प्रकटीकरण हो जाता है। मां अपने भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करती हैं। जब जब देवताओं पर घोर संकट आया तो उन्होंने भी मां भगवती की आराधना कर उस संकट से मुक्ति पाई है। मां के पूजन में किसी भी प्रकार से किसी निरीह प्राणी की बलि नहीं देनी चाहिए। कन्या पूजन करने से सभी बिघ्न बाधा दूर हो जाती है। सम्पूर्ण मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं।
अखिलेश चन्द्र चमोला