वर्तमान समय में मनुष्य बडे ही अशान्ति के दौर से गुजर रहा है। क्या सही है? क्या गलत है? इसका सही निर्णय नहीं ले पा रहा है। जिसके कारण निराशा, कुन्ठा, तनाव व नकारात्मक स्थितियाँ आ रही हैं। अज्ञानता की पट्टी के कारण हम अपने सच्चे स्वरुप को नही पहचान पा रहे हैं। जिस कारण मूलभूत नैतिक मान्यताओँ को बिस्मृत करते जा रहे हैं। हमारी भारतीय संस्कृति युगों युगों से यही उदघोष करती चली आ रही है कि परम तत्व का साक्षात्कार करना ही जीवन का उद्देश्य होना चाहिए।
परम तत्व का साक्षात्कार तभी कर सकते हैं जब हम नैतिक नियमोँ के अनुसार जीवन यापन कर सकें। पहले की तुलना में नैतिक मूल्यों में भारी गिरावट आई है। चोरी, डकैती, हिँसा, बलात्कार, आत्महत्या सामान्य सी बात हो ग्ई है। यह मुख्य रूप से चिन्तन का विषय है कि नैतिकता के मूल्यों के आधार पर जिस देश ने सम्पूर्ण विश्व में जगत गुरु की प्रतिष्ठा प्राप्त की है। आज हम उन्हीं नैतिक मान्यताओँ को भूलकर पाश्चात्य संस्कृति का अन्धानुकरण कर रहे हैं।
लेखक अखिलेश चन्द्र चमोला द्वारा लिखी हुई पुस्तक भारतीय संस्कृति तथा नैतिक शिक्षा के आयाम मेँ भारतीय संस्कृति विश्व की अनमोल संस्कृति, प्रार्थना, कर्म, ब्रह्मचर्य ब्रत का महत्व, अँहिसा, क्रोध, दीप ज्योति, शँख का महत्व, माँ गंगा की महिमा, संस्कार, उपासना योग, आसन, मन्त्र आदि 80 से भी अधिक विभिन्न शीर्षकोँ का समन्नव करने का अतुलनीय प्रयास किया है। वर्तमान समय इस तरह के साहित्य की नितान्त आवश्यकता है। भावी पीढी व आम जनमानस में भारतीय संस्कृति के बीजरोपित करने की सोच रखना उत्कृष्ट तथा उच्चादर्श के भाव को उजागर करता है। लेखक ने पुस्तक में मातृशक्ति का भी ध्यान रखा है, ब्रत, उपासना, करवा चौथ, सप्तवार ब्रत विधान, आदि क्ई विषयोँ पर लेखनी चलाई है। साथ ही सन्दर्भित शिक्षा को भी रेखाकिँत किया है। पुस्तक की भाषा बडी सरल व सहज है। जो कि आम पाठकोँ को पठनीय है। सुन्दर-सुन्दर मन मोहक विषयों को जोडकर लेखक ने एक ऐसा उपवन तैयार किया है जिसकी सुगन्ध युग युगोँ तक फैलती रहेगी।
सूर्य प्रकाश प्रसिद्ध लेखक, वरिष्ठ साहित्य कार