Hindi patrakarita divas:आज हम एक ऐसे मिशन के बारे में बात करेंगे जिसने दुनिया को जागरूक करने के साथ समाज में नई अलख जगाई। परिस्थितियां चाहे जैसी भी रही हों यह अपने मिशन से कभी पीछे नहीं हटा। 196 साल पहले कलम से शुरू हुई यह यात्रा डिजिटल तक आ पहुंची है। आज हिंदी भाषी पत्रकारों के लिए बेहद खास दिन है। आज 30 मई है। इस तारीख को देश में ‘हिंदी पत्रकारिता दिवस’ मनाया जाता है। पत्रकारिता को समाज का आईना भी कहा जाता है।‌

हिंदी पत्रकारिता ने अब तक के लंबे सफर में कई कालखंडों के साथ उतार-चढ़ाव देखें हैं। देश में इसे लोकतंत्र का ‘चौथा स्तंभ’ भी माना जाता है। हालांकि पिछले एक दशक से पत्रकारिता का स्वरूप पूरी तरह से बदल चुका है। ‌आज भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में पत्रकारिता डिजिटल के रूप में समाहित हो गई है। यानी यह पत्रकारिता पूरी तरह से ‘फटाफट’ हो गई है। संसार के किसी कोने में घटित कोई घटना चंद मिनटों में हमारे पास पहुंच जाती है। अब यह तेज गति वाली पत्रकारिता बन गई है, ऑनलाइन जर्नलिज्म, वेब आधारित है। मौजूदा समय में सूचना का आदान-प्रदान बहुत फास्ट होने लगा है।

डिजिटल पत्रकारिता में सभी प्रकार की न्यूज, फीचर एवं रिपोर्ट संपादकीय सामग्री आदि को इंटरनेट के जरिए वितरित किया जाता है। इसमें सामग्री को ऑडियो और वीडियो के रूप में भी प्रसारित किया जाता है। इसमें सामग्री को नवीन नेटवर्किंग तकनीकी के सहयोग से प्रसारित करते हैं। वर्तमान समय में पत्रकारिता का स्वरूप बदला, काम करने का अंदाज बदला, कलेवर बदला, लेकिन इसकी ‘विश्वसनीयता’ आज भी देश और दुनिया में कायम है। ‘इसके साथ सोशल मीडिया भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। आज बड़े मीडिया संस्थानों के साथ न्यूज पोर्टल भी पत्रकारिता के मिशन को आगे बढ़ाने में हर मोर्चे पर डटे हुए हैं’। हिंदी पत्रकारिता ने एक लंबा सफर तय किया है। अब आइए पत्रकारिता का इतिहास जान लेते हैं।

30 मई 1826 को हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत बंगाल से हुई थी

भारत में हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत बंगाल से हुई थी। यूपी के कानपुर निवासी पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने कोलकाता (जब कलकत्ता) से 30 मई 1826 में प्रथम हिंदी समाचार पत्र ‘उदन्त मार्तण्ड’ का प्रकाशन आरंभ किया था। उदन्त मार्तण्ड का शाब्दिक अर्थ है ‘समाचार-सूर्य‘। अपने नाम के अनुरूप ही उदन्त मार्तण्ड हिंदी की समाचार दुनिया के सूर्य के समान ही था। यह पत्र ऐसे समय में प्रकाशित हुआ था जब हिंदी भाषियों को अपनी भाषा के पत्र की आवश्यकता महसूस हो रही थी। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर ‘उदन्त मार्तण्ड‘ का प्रकाशन किया गया।

हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत करने वाले जुगल किशोर शुक्ल का हिंदी पत्रकारिता की जगत में विशेष सम्मान है। पैसों की तंगी की वजह से ‘उदन्त मार्तण्ड’ का प्रकाशन बहुत दिनों तक नहीं हो सका। आखिरकार 1927 के अंत में इसका प्रकाशन बंद कर दिया गया। इसके बाद देश में कई अखबारों का प्रकाशन शुरू हो गया। पत्रकारिता ने देश की आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। देश में 196 वर्ष पहले शुरू हुए इस मिशन पर लोगों की ‘विश्वसनीयता’ आज भी बरकरार है। उदन्त मार्तण्ड की याद में हर साल 30 मई को हिंदी पत्रकारिता दिवस मनाता है।

लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पत्रकारिता की राष्ट्र के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका भी रहती है। पत्रकारिता के बिना लोकतंत्र अधूरा है। न्यायपालिका, कार्यपालिका और व्यवस्थापिका के साथ पत्रकारिता जुड़ी हुई है। किसी भी देश को सरकार चलाने में पत्रकारिता का भी बड़ा योगदान है। चाहे परिस्थितियां कितनी भी जटिल क्यों न‌ हो लोगों को सूचना पहुंचाने के लिए पत्रकार मौके पर एक ‘योद्धा’ की तरह डटे रहते हैं। आज हिंदी पत्रकारिता के अवसर पर उन महान पत्रकारों को नमन, जिन्होंने उस काल की जटिल परिस्थितियों में इस पेशे की शुरुआत की थी।

शंभू नाथ गौतम