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पहाड़ के जीवन और पहाड़ के परिवेश को खुद में समेट कर पहाड़ जैसे हो जाना हर किसी के बस की बात नहीं है। लेकिन पहाड़ के संघर्षों के साथ यहाँ के जीवन, यहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य और यहां पशु-पक्षियों के जीवन को ऐसे समय में भी जीवित रखा है। जब कि कहा जा रहा है कि पहाड़ निरंतर खिसक रहे हैं। इन सब के बीच पहाड़ को पहाड़ तरह जीने वाले लोग आज भी पहाडों को जीवंतता प्रदान कर रहे हैं। इनमें एक नाम है, उत्तराखंड के कोटद्वार, मोटाढांग में रहने वाले दिनेश कुकरेती का, जिनका पक्षी प्रेम और विलुप्त होती गोरैया को नया जीवन देने का संकल्प लोगों को प्रभावित कर रहा है।

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पेशे से अध्यापक दिनेश कुकरेती कोटद्वार में अपने घर और आसपास के लोगों को गौरेया के संरक्षण के लिए प्रेरित कर रहे हैं। और अपनी आमदनी का एक हिस्सा गोरैया का घर (प्लायवुड के घोंसले) बनाने में लगा रहे हैं। साथ ही स्कूली बच्चों, अध्यापकों और आस पड़ोस के लोगों को भी इस मुहिम से जुड़ने के लिए नि:शुल्क में घोसले बनाकर भी दे रहे हैं।

दिनेश कुकरेती जी बीस साल से लगातार गोरैया के संरक्षण करने की दिशा में काम कर रहे हैं। शुरूआती दिनों में दिनेश जी सालभर में 50 से 60 घोसले बनवाकर लगाते थे मगर धीरे-धीरे उन्होंने इन्हें स्वयं ही बनाना शुरू कर दिया और इसी क्रम में उन्होंने सन 2008 से प्रतिवर्ष 100 से 200 घोसलें बनाने और लगाने के लक्ष्य बनाया और अब तक दिनेश कुकरेती जी 6000 से ऊपर घोसलें बना चुके हैं जिन्हें उन्होंने विभिन्न घरों, स्कूलों, सामाजिक आयोजनों और पहाड़ी गाँवों में लगाया या बांटा है।  साल 2018 में उन्होंने 1046 घोसलें बनाने का लक्ष्य रखा था। जिसमें से 700 का आकड़ा उन्होंने छुआ। इस  वर्ष  के लिए उन्होंने 2000 घोसलें बनाने का लक्ष्य अभी से निर्धारित कर दिया है।

हाल ही में रिखणीखाल महोत्सव में अपनी शिरकत के दौरान भी दिनेश कुकरेती  ने 54 घोसलें पर्यावरण प्रेमियों को मुफ्त बांटे थे। और 21 जून अंतराष्ट्रीय योग दिवस पर कोटद्वार योग शिवर में भी 50 घोसले प्रकृति और पर्यावरण प्रेमियों को बांटने जा रहे हैं। दिनेश कुकरेती जी गौरैया के साथ-साथ रोबिन, हुदहुद, मैना और उल्लू के लिए भी नेस्ट बाक्स बनाते हैं।

देवभूमिसंवाद.कॉम के लिए संतोष ध्यानी

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