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पौड़ी: उत्तराखंड सहित हिमालयी राज्यों में करीब 2000 मीटर तक के ऊँचाई वाले क्षेत्रों में औषधीय गुणों से भरपूर एक विशेष कंदमूल पाई जाती है। जिसे गींठी, गेंठी, गेठि, गेठी या वराहकंद आदि नामों से जाना जाता है। यह एक बेल वाला पौधा होता है। इसको के इंग्लिश में Air Potato के नाम से जाना जाता है। इसे पहाड़ी भाषा मे गींठी की सब्जी बोलते हैं। आलू के आकार की कंद रूप की यह सब्जी गर्म तासीर और औषधीय गुणों से युक्त होती है। पहाड़ो में यह सब्जी बरसात के समापन के बाद अर्थात अक्टूबर और नवंबर में होती है। गींठी का प्रयोग मुख्यतः सब्जी के रूप में किया जाता है। इसका स्वाद आलू की अपेक्षा थोड़ा कसैला होता है। ग्राम डांगी की 80 साल की वृद्धा विगेरी देवी बताती हैं कि इसमें कड़वापन को दूर करने के लिए गींठी को उभाल कर रारभर राख में रखा जाता है। हल्की आंच पर राख इसको लाल कलर कर देता है।

उत्तराखंड की बात करें तो जंगलों से लेकर खेत खलियानों में अपने आप उग जाने वाला गींठी का पौधा अब बहुत कम ही देखने को मिलता है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि पलायन की मार झेल रहे पहाड़ी जिलों में बीते कुछ सालों से जंगली सुवरों ने इनकी जड़ें खोद-खोद कर खत्म कर दी हैं। दूसरा इस औषधीय कंदमूल, सब्जी के गुणों और उनके बारे में सही जानकारी ना होने के कारण लोग उनका सही प्रयोग नही कर पा रहे हैं। जिसके चलते अब यह जंगली पोस्टिक सब्जी अब धीरे-धीरे विलुप्त होने के कगार पर है।

हालाँकि दुनियाँ भर में गेठी की लगभग 600 प्रजाति पायी जाती हैं। गींठी के फल इसकी बेल में लगते हैं। जिनका रंग गुलाबी, भूरा तथा हरा होता है। गेठी का यह रंग इसकी प्रजाति पर निर्भर करता है। भारत मे गेठी की 26 प्रजातियां पाई जाती हैं। जिनमे गेठी के साथ डा बेल्फिला (तरुड़ कंद) भी पहाड़ो में पाया जाता है। भारत के आयुर्वेद ग्रन्थ चरक संहिता और सुश्रुत संहिता में गेठी को दिव्य अठारह पौधों में स्थान दिया गया है। चवनप्राश के निर्माण में भी गेठी का प्रयोग होता है। नाइजीरिया को गेठी का सबसे बड़ा उत्पादक देश माना जाता है। नाइजीरिया के अलावा घाना ब्राजील, क्यूबा, जापान इसके मुख्य उत्पादक देश हैं। भारत के कुछ राज्य, उड़ीसा, केरल, तमिलनाडु में इसकी खेती की जाती है। उत्तराखंड में 2000 मीटर तक ऊँचाई वाले क्षेत्रों में गेठी कई बेल पाई जाती है।

ठंड के मौसम में इसका प्रयोग बहुत लाभदायक होता है। पहाड़ी क्षेत्रों में इसे गर्म राख में पका कर इसका सेवन करते हैं। इसे खांसी की अचूक औषधि माना जाता है। गेठी या वराह कंद ऊर्जा का अच्छा स्रोत है। गेंठी में शर्करा (ग्लूकोज) और रेशेदार फाइबर सही मात्रा में पाए जाते हैं। जिससे खून में ग्लूकोज का स्तर बहुत धीरे बढ़ता है। गेंठी में कई ऐसे तत्व पाए जाते हैं, जिनके कारण शरीर मे कोलस्ट्रोल कम बढ़ता है। साथ ही यह मोटापा घटाने में भी लाभदायक है। इसमे विटामिन बी प्रचुर मात्रा में मिलता है। जो बेरी बेरी और त्वचा रोगों की रोकथाम में सहायक होता है।ginthi

गेंठी में कॉपर, लोहा, पोटेशियम, मैगनीज आदि खनिज (मिनरल्स) पाए जाते हैं। जिसमे से पोटेशियम रक्तचाप को नियंत्रित रखता है और कॉपर रूधिर कणिकाओं के निर्माण के लिए आवश्यक है। गेठी की पत्तियों और टहनियों के लेप से फोड़े फुंसियों में लाभ मिलता है। गेंठी को उबालकर सलाद या सब्जी रूप में खाने से खांसी व जोड़ों के दर्द से राहत मिलती है।

गेठी के तनों व पत्तियों के अर्क में घाव भरने की क्षमता होती है। और इसके अर्क में कैंसर कोशिकाओं को मारने की क्षमता भी होती है। जिससे कैंसर जैसी भयानक बीमारी में लाभ मिलता है। इसके पत्तियों के लेप से सूजन व जलन में लाभ मिलता है। इसकी गांठों में स्टेरॉयड मिलता है जो कि स्टेरोएड हार्मोन और सेक्स हार्मोन बनाने के काम आता है।

गेठी बबासीर के मरीजों के लिए किसी वरदान से कम नही है। दस्त के लिए भी यह अति लाभदायक है। इसमे एंटीऑक्सीडेंट प्रचुर मात्रा में होने के कारण रोग प्रतिरोधक क्षमता भरपूर रहती है। और कैंसर में तो लाभदायक होता ही है। (साभार सोशल मीडिया)

जगमोहन डांगी