कबूतरी

 कबूतरी देवी की आवाज ने उनका बहुत पुराना गीत नीचे दिए गए विडियो मे देखें।

राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित, उत्तराखण्ड की पहली लोक गायिका कबूतरी देवी का शनिवार को पिथौरागढ़ के जिला अस्पताल में निधन हो गया। उनके निधन से पहाड़ की परम्परागत लोक गायकी का एक स्वर्णिम अध्याय समाप्त हो गया है जिसकी भरपाई होना मुश्किल है।

73 वर्षीय कबूतरी देवी लंबे समय से अस्वस्थ चल रहीं थीं गुरुवार रात को उन्हें सांस लेने में अत्यधिक परेशानी होने के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया था। आज शनिवार को वह परलोक सिदार गई। कबूतरी देवी के निधन की खबर आने के बाद उनका परिवार और पूरे उत्तराखण्ड मे उनके प्रसंशक शोक में डूबे हुए हैं। राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित कबूतरी देवी पिथौरागढ़ के सुदूर ग्रामीण अंचल क्वीतड़ ब्लॉक मूनाकोट की रहने वाली थीं। कबूतरी देवी ने पर्वतीय लोक शैली को अंतरराष्ट्रीय मंचों तक पहुंचाया था।

कबूतरी देवी ने आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों के लिए करीब 100 से अधिक गीत गाए। उनके गीत आकाशवाणी के लखनऊ, नजीबाबाद एवं रामनगर केन्द्रों से ‘उत्तरायण‘ व अन्य कार्यक्रमों से प्रसारित होते थे। कबूतरी देवी का उत्तराखण्ड और हिमालयी इलाके के लोक संगीत में एक बहुत बड़ा नाम रहा है। मधुर और खनकती आवाज की धनी कबूतरी देवी को लोग पहाड़ की तीजन बाई के नाम से भी जानते हैं। आज से तीन-चार दशक पूर्व लखनऊ और नजीबाबाद के आकाशवाणी केन्द्रों से ‘उत्तरायण‘ व अन्य कार्यक्रमों से जब उनके गीत प्रसारित हुए तो लोक संगीत की दुनिया में उनकी एक खास और अलग पहचान बनी।

पारिवारिक विरासत में मिली लोक गायन की मामूली शिक्षा-दीक्षा के बावजूद भी कबूतरी देवी के गायन शैली में कई विशेषताएं मिलती है। उनके गायन शैली में पिथौरागढ़ की सौर्याली और काली पार डोटी अंचल की जो साझी झलक मिलती है वह बहुत ही विशिष्ट और अद्भुत है। ठेठ पहाड़ी राग में उनके कण्ठ से जब गीतों के स्वर फूटने लगते हैं तो हर श्रोता उनके गीतों का खुद-ब-खुद मुरीद बन जाता है। आकाशवाणी से प्रसारित उनके कई गीत बहुत ही लोकप्रिय हुए, आज भी यह लोकगीत भी लोगों के बीच खासा लोकप्रिय है।

  पहाड़ को ठण्डो पाणि, सुणी कति मीठी वाणी, सुण नि लागैनी।                                                      पहाड़ मा देव हिमालय व देवता भूमि, देवी-देव वास कनी देवभूमि पौनी। (साभार: यूट्यूब)

पहाड़ के श्रोतों का पानी कितना मीठा है और साथ ही यहां की बोली भी कितनी मीठी है। अहा इसे देखकर ठण्डा भी नहीं लगता है। इस देवभूमि को छोड़कर जाने का हमारा मन करता ही नहीं है। पर्वतीय परिवेश की इस खासियत को कबूतरी देवी ने गीत-संगीत में जिस सुन्दरता के साथ पिरोया है उसकी छाप लोगों के दिल में गहराई तक समायी हुई है।

कबूतरी देवी का जन्म 1945 में चम्पावत के लेटी गांव के मिरासी परिवार में हुआ। इनके पिता का नाम श्री देवी राम और माता का नाम श्रीमती देवकी था। कबूतरी देवी को गीत संगीत की शिक्षा-दीक्षा उनके माता-पिता से ही प्राप्त हुई। उनके पिता देवीराम को गाने-बजाने में महारत हासिल थी। वे हुड़का और सारंगी के साथ ही तबला व हारमोनियम बहुत अच्छा बजाते थे। कबूतरी देवी की मां भी लोक गायन में निपुण थीं। इसका फायदा कबूतरी देवी को अवश्य मिला और वे बालपन से ही वे गाने-बजाने में पारंगत हो गयी।

कबूतरी देवी ने 28 मई, 1979 को उन्होंने आकाशवाणी की स्वर परीक्षा उत्तीर्ण कर अपना पहला गीत लखनऊ के आकाशवाणी केन्द्र में रिकार्ड करवाया। इस तरह आकाशवाणी के माध्यम से उनके गाये गीत लोगों के बीच लोकप्रिय होते चले गये। बाद में आकाशवाणी के नजीबाबाद, रामपुर समेत अन्य कई केन्द्रों में भी इनके गीतो की रिकार्डिंग हुई और उनके गीत वहां से प्रसारित भी हुए। परिवार की आर्थिक तंगी के कारण उन दिनों पिथौरागढ़ से आकाशवाणी केन्द्रों तक आना-जाना भी मुश्किल भरा काम होता था। कबूतरी देवी को तब उस समय एक गीत को गाने का पारिश्रमिक केवल 50 रुपया ही मिलता था जो उनके आने-जाने के खर्च के हिसाब से कम हुआ करता था, फलतः उन्हें कई बार मेहनत-मजदूरी से अतिरिक्त पैसा जुटाना पड़ता था।                 स्वर्गीय पप्पू कार्की की आवाज मे कबूतरी देवी जी का पुराना गीत 

अभी कुछ दिन पहले ही एक सड़क दुर्घटना मे स्वर्ग सिधारे उत्तराखण्ड के युवा गायक स्वर्गीय पप्पू कार्की ने कबूतरी देवी के बहुत पुराने लोकगीत को अपनी आवाज व अंदाज मे रिकॉर्ड करवाया था, जिसे यू ट्यूब पर लाखों लोगों ने पसंद किया। ऊपर दिए गए विडियो मे देखिये स्वर्गीय पप्पू कार्की की प्रस्तुति।