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कोरोना के विश्वव्यापी संकट के समय में दुनियाभर के सामने बस एक ही सवाल है, एक ही चुनौती है कि कोविड19 के इस जानलेवा कोरोना वायरस का खात्मा कैसे होगा, अंत कब होगा। हमारे देश में भी देशव्यापी लॉकडाउन का चौथा चरण शुरू हो गया। लॉकडाउन के दौरान जरूरतमंद लोगों को जरूरत भर की चीजें उपलब्ध कराने में शासन-प्रशासन की टीमें बड़ी मुश्तैदी से काम कर रही हैं। बावजूद इसके सब तक सभी जरूरी सामान नहीं पहुंच पा रहा है। ऐसे में समाजसेवी और सामाजिक संगठन संकट की इस घड़ी कोरोना योद्धाओं की भूमिका में नज़र आ रहे हैं। देवभूमि संवाद ने दिल्ली-एनसीआर सहित देशभर में अलग-अलग स्थानों में समर्पित भाव से काम कर रहे लोगों को अपने पाठकों से रूबरू कराने की पहल की है। हम अपनी इस श्रृंखला की शुरुआत कर रहे हैं कोरोना संकटकाल में वासुकी फाउंडेशन के सामाजिक सहयोग के कार्यों से। पेश है वासुकी फाउंडेशन के अध्यक्ष एवं समाजसेवी पी एन शर्मा से पत्रकार और संस्कृतिकर्मी डॉक्टर कुसुम भट्ट शर्मा की बातचीत के संपादित अंश।

कुसुम: शर्मा जी आपको कोरोना संक्रमण का डर नहीं लग रहा है जो आप इस तरह से सुबह, शाम और दिन में लोगों को राहत सामग्री बांटने जा रहे हैं।

पी एन शर्मा: हां डर जरूर लग रहा है लेकिन इस बात का नहीं कि कहीं मैं कोरोना वायरस से संक्रमित ना हो जाऊं बल्कि डर इस बात का लग रहा है कि मेरे नजदीक या संपर्क के लोगों में कोई भूखा ना सो रहा हो। डर इस बात का सता रहा है कि कहीं कोई पैसों  के अभाव में  दवाओं लिए नहीं तरस यहा हो। डर इस बात का है कि इस भरी दुनिया में कहीं कोई अपने आपको बिल्कुल अकेला महसूस नहीं कर रहा हो। बाकी रही कोरोना संक्रमण का डर अगर डॉक्टर, नर्स, पुलिसकर्मी, सफाईकर्मी भी डरने लग गए तो फिर हो गया कोरोना पीड़ितों का इलाज। इसलिए मैं बिल्कुल निडर और बेफिक्र होकर नर सेवा नारायण सेवा की भावना के तहत जनसेवा के काम को अंजाम देने की कोशिश भर कर रहा हूं। देखिए कितना कर पाता हूं ईश्वर ही जाने।

कुसुम: बात अपनी जगह आपकी बिल्कुल दुरस्त है लेकिन हाल ही मैं आप अस्पताल से अपना इलाज करके लौटे हैं फिर इतनी सक्रियता कहीं आपके मन की भावुकता तो नहीं  है?

पी एन शर्मा: अस्पताल से ठीक होकर घर आने के बाद भी अगर कोई आदमी जीवन की सच्चाई से वाकिफ नहीं हो सके तो मेरा मानना है कि वो इंसान इंसानियत को समझने में अभी तक नाकाम रहा है। जीवन में बहुत सारे काम हमें इंसान होने के नाते भावुकतावश ही करने पडते हैं मेरी नज़र में ये ही काम इंसानियत को जिंदा रखते हैं।

कुसुम: कोरोना संकटकाल में आपकी समाजसेवा का इलाका और दायरा क्या रहा है?

पी एन शर्मा: मैंने कहा ना कि मैं अपने सामर्थ्य और सद्भावना के बलबूते पर ही जो थोड़ा बहुत कर पा रहा हूं। सबसे पहले लाॅकडाउन होते ही मुझे अपनी कर्मभूमि दिल्ली के मयूर विहार फेस तीन की याद आई तो मैंने यहां पर भोजन के डिब्बे वितरण से लेकर राशन वितरण और गैस सिलेंडर तक भिजवाए। मयूर विहार फेस तीन में युवा समाजसेवी विजय नेगी ने जगह-जगह पर अपनी मौजूदगी से मेरा मनोबल बढ़ाया। लाॅकडाउन वन में हमने मयूर विहार फेस तीन, घडोली गांव में भोजन और राशन दिया। वहीं गाजीपुर इलाके में और पेपर मार्केट और गाजीपुर मंडी में भी हमने जरूरतमंद लोगों को राहत सामग्री और पहुचाई। गाजीपुर थाने के एसएचओ पी एस नेगी ने मित्र पुलिस के दायित्व का निर्वाह करते हुए लोगों में सोशल डिस्टेसिंग बनाने में भरपूर सहयोग  किया। बात चाहे कंस्ट्रक्शन कंपनियों में श्रमिकों को राशन वितरण की हो या फिर आनंद विहार बस अड्डे में रुके उत्तराखंड के युवाओं को फल वितरण की हर जगह सोशल डिस्टेसिंग का बखूबी पालन कराया गया है।

कुसुम: उत्तराखंड के गांवों में आप अब तक कहां-कहां मदद कर पा रहे हो?

पी एन शर्मा: मैंने अपने गृह विकासखंड नैनीडांडा के गिनती भर के गांवों में राशन और जरूरी सामान का वितरण करवाया है। नैनीडांडा इलाके में युवा समाजसेवी और वासुकी फाउंडेशन के नैनीडांडा प्रतिनिधि अनिल मडवाल के माध्यम से मैं राहत और राशन सामग्री भिजवा रहा हूं। हालात सामान्य होने के बाद जल्द ही दिल्ली से वासुकी फाउंडेशन की एक टीम नैनीडांडा जाएगी और कोरोना संकट से इलाके के हालातों का जायजा लेकर शासन-प्रशासन को इसकी एक रिपोर्ट सौंपेगी।

कुसुम: ये जो समाजसेवा के कार्य आप कर रहे हो इसके लिए धन की व्यवस्था कहां से होती है?

पी एन शर्मा: मैंने अपने जीवन में जो कुछ भी हासिल किया है वो अपने पुरुषार्थ के बल पर कमाया है। मेरे लिए धन की व्यवस्था मेरा भगवान करता है। उसी ईश्वर की कृपा है कि मैं आज मैं आज समाज के शोषित और वंचितों के साथ साथ उन सभी जरूरतमंदों की सेवा कर पा रहा हूं जिनको वास्तव में मदद की दरकार है।

कुसुम: आप समाजसेवा के कार्यों में हमेशा बढ़ चढ़कर आगे रहते हैं लोगों की मदद करने की प्रेरणा आपको कहां से मिलती है।

पी एन शर्मा : समाजसेवा के कार्यों की प्रेरणा हमेशा ही समाज से मिला करती है। आप जरा आप इस बात को इस नजरिए से भी देखिए कि मैं जब गांव से दिल्ली आया था तो बिल्कुल रीता था, खाली हाथ था। अगर आज में समाज को कुछ दे पाने की स्थिति में हूं तो समाज में भी तो कभी मेरी मदद की होगी। रही बात मेरे समाजसेवा के कार्यों की तो मैं अकेला समाजसेवी नहीं हूं उत्तराखंड से। उत्तराखंड से माता मंगला और भोले जी महाराज द हंस फाउंडेशन के जरिए, संजय शर्मा दरमोड़ा नई पहल नई सोच, बृजमोहन उप्रेती, उत्तराखंड लोकमंच, संदीप शर्मा, दामोदर हरि फाउंडेशन, दीपक ध्यानी फाउंडेशन शुरुआत, कुसुम गोपाल असवाल, कात्यायनी फाउंडेशन, ज्योति डंगवाल, एचएमटी के जरिए कोरोना के इस संकटकाल में समाज के प्रति अपने दायित्व का बखूबी निर्वहन कर रहे हैं।

मेरा ऐसा मानना है कि अगर जीवन में आप किसी की सेवा कर रहे हो तो आप उस पर अहसान नहीं कर रहे हो बल्कि ये ईश्वर की कृपा है कि उसने आपको किसी की सेवा करने का सामर्थ्य और शक्ति दी है।