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शंभू नाथ गौतम

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आते जा रहे हैं भाजपा, सपा, कांग्रेस और बसपा सियासी पिच पर अपनी ‘बिसात’ बिछाने में लगी हुई हैं। इसके साथ इन राजनीतिक दलों में जातियों को लेकर भी नफा नुकसान का ‘आकलन’ कर रहे हैं। जहां बसपा दलितों के साथ ब्राह्मण वोटरों पर नजर लगाए हुए हैं वहीं सपा पिछड़ों के साथ मुसलमानों और ब्राह्मणों पर आकर टिक गई है। वहीं कांग्रेस मुसलमानों, दलितों और पिछड़ा वर्ग को साधने में लगी हुई है।

अब भाजपा भी प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने से पहले ओबीसी समाज के साथ खड़ा होना चाहती है। भाजपा के रणनीतिकार जान रहे हैं कि ओबीसी समाज का एक बड़ा वर्ग समाजवादी पार्टी के परंपरागत वोटर माने जाते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए भाजपा ने सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के मुखिया ओमप्रकाश राजभर के आगे एक बार फिर से ‘बीन’ बजाई हैं। कुछ दिनों पहले तक ओमप्रकाश राजभर भाजपा पर लगातार हमला करते रहे हैं यही नहीं उन्होंने साल 2022 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को ‘नेस्तनाबूद’ करने की कसम भी खाई थी।

बात को आगे बढ़ाने से पहले यह भी जान लेते हैं कि साल 2017 के यूपी के विधानसभा चुनाव में राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और भाजपा गठबंधन करके चुनाव लड़ी थी। उसके बाद योगी सरकार में ओपी राजभर को कैबिनेट मंत्री भी बनाया गया। लेकिन ‘साल 2019 में भाजपा विरोधी बयानों की वजह से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ओमप्रकाश राजभर को अपने कैबिनेट से बाहर का रास्ता दिखा दिया था’। तभी से वे प्रदेश में भाजपा के ‘धुर विरोधी’ हो गए थे। उसके बाद उन्होंने छोटी-छोटी 10 पार्टियों के साथ ‘भागीदारी संकल्प मोर्चा’ बना लिया।

हाल के वर्षों में राजभर ने पूर्वांचल के कई जिलों में पिछड़ा वर्ग में अपनी मजबूत पकड़ बना ली है। भाजपा भी अब उन्हीं के सहारे ओबीसी को अपने पाले में लाने के लिए ‘जुगाड़’ में लगी हुई है। जब ओपी राजभर को लगा कि भाजपा को चुनाव से पहले उनकी जरूरत है तो उन्होंने अपनी ‘ब्लैकमेलिंग’ भी शुरू कर दी है। अब दोनों ओर से ‘मित्रता’ के हाथ बढ़ाए जा रहे हैं।

राजभर ने एनडीए में लौटने के लिए भाजपा के सामने रख दी कई बड़ी शर्तें

आखिरकार दो साल बाद भाजपा और ओमप्रकाश राजभर करीबी देखने को मिली। बता दें कि इसकी शुरुआत मंगलवार सुबह यूपी की राजधानी लखनऊ से हुई। राजभर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह के घर पहुंचे। दोनों नेताओं के बीच बंद कमरे में एक घंटे तक मुलाकात हुई। इसके बाद ही सियासी गलियारों में चर्चा दौड़ने लगी कि राजभर फिर से ‘एनडीए’ का हिस्सा बनने जा रहे हैं। गौरतलब है कि राजभर बलिया जिले से आते हैं। यहीं से भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह भी हैं। दयाशंकर ने ही भाजपा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह से राजभर की मुलाकात कराने में अहम भूमिका निभाई।

स्वतंत्र देव सिंह से मुलाकात के बाद एक बार फिर से चर्चा में आए ओपी राजभर ने भाजपा के साथ आने के लिए कई ‘शर्ते’ रख दी हैं। ‘राजभर ने सरकार में शामिल होने के लिए शर्त रखते हुए कहा कि भाजपा अगर हमारी मांगें, जिसमें पिछड़ी जाति के व्यक्ति को सीएम उम्मीदवार के रूप में घोषित करना, जाति आधारित जनगणना, लोकसभा में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण, सामान्य और अनिवार्य मुफ्त शिक्षा, घरों में मुफ्त बिजली, शराब पर प्रतिबंध और सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट को लागू करने के बाद, हम गठबंधन पर विचार कर सकते हैं’। यानि राजभर की शर्तों के अनुसार वो नहीं चाहते हैं कि योगी आदित्यनाथ दोबारा प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। लेकिन उन्होंने साथ में यह भी कहा कि राजनीति में कुछ भी ‘असंभव’ नहीं है।

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने भी इस मुलाकात को शिष्टाचार भेंट बताया। वहीं भाजपा उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह ने कहा कि ओम प्रकाश राजभर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दलितों और पिछड़ों के लिए किए गए कार्यों के प्रशंसक रहे हैं। ऐसे में वह हमारे साथ दोबारा भी आ सकते हैं। उनकी कोशिश है कि उन्हें दोबारा एनडीए में लाया जाए। लेकिन ओमप्रकाश की शर्तों के अनुसार मुख्यमंत्री योगी बिल्कुल सहमत नहीं होंगे। दूसरी ओर काफी समय से राजभर की पार्टी के साथ असदुद्दीन ओवैसी की गठबंधन की बात चल रही थी। लेकिन अब राजभर की भाजपा नेताओं के साथ मुलाकात के बाद प्रदेश की सियासत में ओवैसी को कोई नया साथी तलाशना होगा।