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पुस्तक समीक्षा :-

कोटद्वार एक दौं कै आयोजन मा कै भौत बडु आदिमन, जो बरसों बिटिन भाषा आन्दोलन तैं अपणि आवाज देण लग्यां छन अर हमरा आदरणीय छन, वोन बोलि कि प्रवासी जु गढ़वाळी, कुमाउनी भाषाओं म ल्यखणां छन वों का ल्यख्यां न हमरू साहित्य को भलु नि होणु। वो ता सिरप अर सिरप अपणि खुद मिटाणा खातिर ल्यखणां छन। इलै अगर गढ़वाळी भाषा को भलु होण तो उत्तराखण्ड म रैण वळा साहित्यकारों से अर कलमकारों से होण। सैद या वोंको अपणु मनणु हो पर संगति स्य बात नी।

स्य बात अलग छ कि प्रवासी छया जौंन दिल्ली बिटिन गढ़वाळी साहित्य मंदिर म मात्र तीन-तीन महाकाव्य ये प्रवास बिटिन ही देन। भुम्याळ अबोध बन्धु बहुगुणा जी, उत्तरायण, श्री प्रेमलाल भट्ट जी अर नागरजा, महाकवि कन्हैयालाल डंड़रियाल। यां का अतिरिक्त कविता संग्रह, कहानी संग्रह, नाटक समेत सबि विधाओं परैं प्रवासी ल्याखणा छन। ये सन्दर्भ अर प्रसंग को कारण यो छ कि हमरू मनणु छ कि साहित्य सृजन का वास्ता देशकाल अर परिवेश को क्वी खास महत्व नीं। माहौल अर मना भितनैं उमाळ अर सगोर हो ता विदेशा धर्ती म बिटिन बि आप साहित्य सृजन कै सकदन, अन्तरिक्ष बिटिन बि आप लेखी सकदन।

हैंकि बात जो बनु चाणा छंवा कि दिल्ली म हाल ही म गढ़वाळी, कुमाउनी, जौनसारी भाषाओं का खातिर भाषा अकादमी को गठन करेगे। जैका पैला उपाध्यक्ष हमरा लोक का लोक गायाक, जनकवि अर हमरा समाजा सिरमौर श्री हीरा सिंह राणा जी बणये गेन। य हमरू साहित्य अर समाजा वास्ता भौत भलि बात छ। उम्मेद कर्दां कि राणा जी का नेतृत्व म हमरि भाषाओं का विकास का वास्ता भला कारिज होला अर नै नवाण ल्यख्वारों तैं अगनै औणा मौका मीललु। स्य बात अलग छ कि यीं अकादमी म कै बि साहित्यकार तैं जगा नि दिये गे। दिल्ली सरकार न सैद उत्तराखण्डा साहित्यकारों तैं ये लैक नि समझि हो नथर भाषा अकादमी म अगर साहित्यकार नि होवन ता फिर कैन होण छौ पण य बात सौ आना सच छ कि श्री हीरा सिंह राणा जी तैं छोड़िकि क्वी बि कलमकार अर लोक का खातिर काम कन वळु क्वी बि मनीषी शामिल नि करेगे। ता अगनै अगनै क्य होलु अर कनु काम होलु आप अनुमान लगै सकदां।

मथि हमुन द्वी पैरा लेखिन आप स्वचणा होला कि शीर्षक ता पोखड़ा बिटिन पयाश जी की पैलागुन चा ता सि बात किलै? ता मतलब यो छा कि दिल्ली रैणा का दौरान हि आदरणीय बड़ा भैजी पयाश पोखड़ा जी न अपणु गजल संग्रै पैलागुन पोखड़ा लिख्यूं छ। अर  प्रकाशक बि दिल्ली म गढ़वाळी भाषा को सल्लि भुला अनूप रावत छ जौं को रावत ड़िजिटल प्रकाशन लगातार प्रकाशन का क्षेत्र म अगनै बढणों छ। मल्लब यो छ कि दिल्ली साहित्य सृजन का क्षेत्र म बि सर्वोपरि छ अर प्रकाशन का क्षेत्र म बि हमरा लोग अगनै औण लग्यां छन। हाल का वर्षों म दिल्ली म हर मैना एक, द्वी किताबों को लोकार्पण हूण लग्यों छ। अर महाकवि कन्हैयालाल डंड़रियाल साहित्य सम्मान हो चा महेश्वरी देवी, कुलानन्द बुड़ाकोटी साहित्य, समाज सेवा सम्मान हो दिल्ली बिटिन दिये जाणा छन। उत्तराखण्ड लोक भाषा साहित्य मंच अर दिल्ली पैरामेड़ीकल एण्ड मैनेजमेंट इन्स्टीट्यूट का माध्यम से गढ़वाळी, कुमाउनी कक्षाओं को हर साल आयोजन बि यीं दिल्ली म हि हूण लग्यों छ। अगर यांका बाद बि हमरा लोग बुल्दन कि उत्तराखण्ड सै भैनै वळों को साहित्य सृजन का क्षेत्र म योगदान कुछ नी अर वो सिरप अपणि खुद मिटाणा खातिर साहित्य सृजन कनां छन ता हमतैं य बात बि स्वीकार चा। मन म खुद हो, दर्द हो, पीड़ा हो अर भाव हो त वी मनखि कुछ सार्थक कैरि सकदा। अर दिल्ली वळा लोग दिल्ली बिटिन सी कना छन। अर पयाश जी की गजल की गौंछी यीं कड़ी म एक हौरि नायाब मोलि छ।

श्री पयाश पोखड़ा जी जौं कु असलि नौ विभूति भूषण जोशी छ, वों कि यी गजल की गौछी म एक सौ बीस गजल छन। अर जनु कि पयाश जी अपणि बात म खुद बुनां छन कि वोन हर भाव तैं अपणि गजलों म सजयों छ। जिन्दगी का हर भाव, हर पीड़ा अर सुख, दुख तैं जगा दियीं छ।

अपणि पैलि गजल म पयाश जी लिखदन –
अपणि कचकों तैं कनके लुकौं
अपणा गैरा घौ कनके सुखौं।
आंखा भोरिकि आँसु पैंछा दे ग्यवा
बता मि त्यारू उधार कनके चुकौं।

मन की पीड़ा अर कचकों तैं भौत भलि धाद लगयीं छ पयाश जी की। अपणि हैंकि गजल अनगिर धर्यां मच्छ्यळा म वो बुलदन-
अनिगिर धर्यां मुच्छ्यळा अभितलक अमलटा छन
ये बामणा का कीसाउंद अभितलक स्यापटा छन।
सच थैं याद नि रखणु प्वड़दु लेाग इन ब्वलदिन,
तभी तक वो भि ब्वलण बच्याणा मा खटखटा छन।

आँखि खोल, कुछ न बोल गजल का माध्यम से पयाश जी भौत कुछ बिगैं दिदन अर वो अपणि कलम का माध्यम से बुल्दन कि-
आँखि खोल, कुछ न बोल, द्यखणा खुणै अभि छैंच छक्वै,
पाटि घुट्यो,ब्वळख्या उठो, ल्यखणा खुणै अभि छैंच छक्वै।
रौला-बौला गाड-गदनि समोदर भ्यटेणा खुणै जाणि रदिंन,
तू आॅखि मूंज, आँसु फूंज, बवगणा खुणै अभि छैंच छक्वै।।

अपणि एक हैंकि गजल म पयाश जी अपणु गैळ्या तैं याद कर्दन अर वै खुणि बुल्दन कि हे मेरा गैळ्या ऐ जा। अपणा घर, गौं की सार खबर अर हालातों परैं नजर डाळि जा। ल्या एक बानगी आप खुद देखा-
ऐ जा गैळ्या गाँवा की खबर सार ल्ही जैई
गौं की स्यवा सौंळि अर नमस्कार ल्ही जैई।
फड़कीं फैड़ि छटकीं छज्जा तिड़कीं तिबरि,
आँख्यूं मा अपणि कूड़ि कु खंद्वार ल्ही जैई।।

जन कि हमन पैलि बोलि छौ कि पयाश जी दिल्ली बेस मनखि छन। वों कोु अपणु गौं अर पाड़ म बरौबर आणु जाणु लग्यों रैंदं। तबी त वों कि हर गजल कखि न कखि हमरा घर गौं, परिवेश अर समाजा हर भाव तैं उकेरद। फेरि एकदां तु जरसि गजल म आप अलग बानगी खुद मैसूस कारा-
फेरि एकदां तू जरसि सुर्वात कैर त सै,
कभि मी दगड़ भि मुलाकात कैर त सै।
त्यारू पीठ फरकाणु मीथै भलु नि लगुदु,
कभि-कभि अमणि-समणि ऐकि बात कैर त सै।।
गौं म खालि हूंदा कूड़ों अर गौं, गळ्या बाटा घाटों की ब्यथा परैं पयाश जी की कलम क्य बुनी खुद सूणा-
खन्द्वार हुयां कूडों थै घार समझणू चा,
उड्यार हुयां म्वारों थैं द्वारा समझणू चा।
जणेक घू फर जो छट्ट छोड़ जंदनि,
वों य सड़कि बाटों थैं यार समझणू चा।।

श्री पयाश पोखड़ा जी उम्र का साठ वसंत पार वळा युवा गजलकार अर गीतकार छन। वों का मन का भाव आप वोंकि यी पोथि म पैढि सकदन। पिरेम अर प्यार परै पयाश जी की एक हौरि गजल तिल जो मेरि हि जिकुड़ि मा, मयळु मन का भाव आप खुद देखा।-
तिल जो मेरि हि जिकुड़ि मा लुकुणु छाई,
छुची! थ्तल पैलि त मीथैं भि पुछुणु छाई।
किलै ब्वनि छै मी खुणै दुन्या कु जयूं बित्यूं,
छुची! तिल पैलि त मीथैं भि समझुणु छाई।
तेरि सकल आँख्यूं मा द्यख्दा रै ग्यौं सदनि,
छुची! तिल पैलि त मीथै भि ख्वजुणु छाई।।

कुल मिलैकि बोलि सकदां कि श्री पयाश पोखड़ी जी न भौत भलि-भलि गजल हमु तैं दियीं छन। उम्मेद कर्दां कि औण वळा समय म आप हौरि बि गजल लिखिला अर गढ़वाळी साहित्य मन्दिर मा आपकी अग्याळ बरौबर चढणीं रालि। आप हमरा समाजा वों मनीषियों म छन जो चुपचाप बिना शोर सराबा कर्यां अपणु काम कन लग्यां छन। आपकी गढ़वाळी गजल तैं कै गजल गायकों न अपणि आवाज देन अर उम्मेद छ कि औण वळु समय म हौरि बि गायक आपकी गजलों तै अपणि आवाज द्याला।

रावत डिजिटल बिटिन प्रकाशित श्री पयाश पोखड़ा जी की य गजल संग्रै पैलागुन पोखड़ा एक सौ अडतालीस पेजा कि पाथि चा। यीं पोथि का मुखपत्र सज्जा सृष्टि पोखरियाल जी न कैरि अर शब्द संयोजन रावत डिजिटल का अनूप रावत जी न कैरि। पैलु प्रकाशन वर्ष 2019 चा। अज्यों यीं पोथि को लोकार्पण भौज जल्दि दिल्ली म होण। हमरि तर्पां बिटिन आदरणीय बड़ा भैजी पयाश जी तैं हार्दिक बधै अर शुभकामना छन। उम्मेद छ कि आपौ दगडु अर भलि, भलि गजलों तैं पढ़णा मौका हमुतैं बराबर मिलणौ रालु।

त ल्यावा भै, बैणौं दिल्ली बिटिन पोखड़ा अपणि माटी, थाती, गौं, गुठ्यार, इस्गोल, अर  अपणा पुरण्यों तैं पैलागुन कना छन पयाश जी। दिल्ली हो चा कखि बि होवन हम लोग अपणि भाषा, संस्कृति, सरोकारों अर अपणी माटी से जुड्यां रावन। यी प्रयास हमरा बड़ा भैजी पयाश जी को बि कर्यों छ। आप लोखों से हथजुडै़ छ कि आप यीं गढ़वाळी गजल की पोथि तैं जरूर खरीद्यां अर पौढ्यां। श्री पयाश पोखड़ा जी तैं पुनः हार्दिक बधै अर शुभकामना छन।